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बुधवार, 23 जून 2010

वो जो मुझमे शामिल है |






न जाने क्यूँ कर लेता हूँ मै तुम्हे खुद में शामिल
ये जानते हुए भी कि
परदेसी बादलों का मेरे शहर से रंज पुराना है
मेरी बातों का जो सिरा तुम तक पहुँचता है
वो कुछ इस तरह गुंथा होता है
जैसे अक्सर नहाने के बाद तुम्हारे जूड़े होते हैं
उन बातों में छुपी बातों को
सावधानी से निकलती तुम
अक्सर किसी ब्लेक एंड व्हाईट फिल्म की नायिका की
तरह हो जाती हो
जिसकी निगाह प्यार में या तो जमीन पर होती है या आसमान पर
तुम जानना चाहती हो उन कविताओं के बारे में
जो तुमने मुझे याद करके नहीं लिखी
उन ग़जलों के बारे में
जिन्हें लिखते वक़्त
रात की स्याही पन्नों पर उतर आई थी
मै जानता हूँ
मै तुममे या तुम्हारी कविताओं में कभी शामिल नहीं रहता
मगर मै होना चाहता हूँ
यही एक कोशिश कविता को कविता
और प्यार को प्यार बनाये रखती है