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बुधवार, 23 जून 2010

वो जो मुझमे शामिल है |






न जाने क्यूँ कर लेता हूँ मै तुम्हे खुद में शामिल
ये जानते हुए भी कि
परदेसी बादलों का मेरे शहर से रंज पुराना है
मेरी बातों का जो सिरा तुम तक पहुँचता है
वो कुछ इस तरह गुंथा होता है
जैसे अक्सर नहाने के बाद तुम्हारे जूड़े होते हैं
उन बातों में छुपी बातों को
सावधानी से निकलती तुम
अक्सर किसी ब्लेक एंड व्हाईट फिल्म की नायिका की
तरह हो जाती हो
जिसकी निगाह प्यार में या तो जमीन पर होती है या आसमान पर
तुम जानना चाहती हो उन कविताओं के बारे में
जो तुमने मुझे याद करके नहीं लिखी
उन ग़जलों के बारे में
जिन्हें लिखते वक़्त
रात की स्याही पन्नों पर उतर आई थी
मै जानता हूँ
मै तुममे या तुम्हारी कविताओं में कभी शामिल नहीं रहता
मगर मै होना चाहता हूँ
यही एक कोशिश कविता को कविता
और प्यार को प्यार बनाये रखती है

8 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

सावधानी से निकलती तुम
अक्सर किसी ब्लेक एंड व्हाईट फिल्म की नायिका की
तरह हो जाती हो
क्या बिम्ब है ..माशाल्लाह ..

شہروز ने कहा…

ओह !! कितनी सादगी है..क़त्ल भी करते हैं प' तलवार नहीं है ....

Amitraghat ने कहा…

"आनन्द आ गया."

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरती से एहसास पिरोये हैं...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना !

शारदा अरोरा ने कहा…

रात की स्याही पन्नों पर उतर आई थी
sundar bhavabhivyakti
nikaltee ya shayad nikaaltee

चण्डीदत्त शुक्ल-8824696345 ने कहा…

सलामत रहे दोस्त ये प्यार
ब्लैक एंड ह्वाइट ना हो
रहे कलरफुल....

हर्षिता ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति है।

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