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मंगलवार, 25 मार्च 2014

कितना सहा ,कितना कहा ?

कहो श्वेताम्बरा
कितना सहा ,कितना कहा ?
कितना  वक्त तुमने अपनी मुट्ठियों में बाँधा ?
कितने मौसम ,बेमौसम ठहर गए ?
कितनी बार तुम्हारे पांव दरवाजे से झांकते उजाले की और बढे
और कितनी बार तुमने उन्हें समझाया |
कितनी बार तुमने दहलीजों को चूमा ?
कितनी बार लड़ आई तुम अपने हिस्से का युद्ध |
कितनी बार टूटा वो सब कुछ जो शीशा था
कितनी बार पिघला वो सब जो पत्थर था |

कहो श्वेताम्बरा
कितना खोया ,कितना पाया ?
कितनी आग अब भी तुम्हे सड़कों पर नजर आती है ?
कितनी राख तुम्हारे साथ लिपट कर सो जाती है ?
कितने रंग तुम्हे खुद में नजर आते हैं ?
कितना बेरंग हो जाता है सब कुछ
जब बीता हुआ कल धडधडाते हुए तुम्हारे भीतर चला आता है |
कितनी धूप ,कितनी छाँव
अब भी तुम्हारे आँगन में कुर्सी से सर टिकाये बैठी है |


कहो श्वेताम्बरा
कितना बादल ,कितना पानी ?
कितनी बार टूटा तुम्हारी आँखों का संयम ?
कितनी बार होंठ बस थरथराते हुए रह गए ?
कितने अकेले हो जाते हो तुम मेरे जाने के बाद ?
कितना अकेला कर देता हूँ मैं तुम्हे
जब कभी तुम्हारे पास होकर भी तुम्हे ढूँढता हूँ |
कहो श्वेताम्बरा कितनी दुआएं,कितनी मन्नतें
 खर्च कर दी तुमने उनके लिए
जिनके लिए तुम्हारा होना केवल कविता के होने जैसा है
कितनी बार पुकारोगी तुम उनका नाम
जो तुम्हारे शहर को सजदा कर लौट चुके हैं |
कहो श्वेताम्बरा ,कितने .......