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सोमवार, 23 नवंबर 2009

हम जब दुबारा मिले !

( वर्ष पूर्व डायरी में लिखी गई ये कविता मैंने बिसरा दी थी )




हम एक बार फिर उससे मिले
इन सर्दियों में
तमाम बारिश मै अपने शहर छोड़ आया था
बेहिसाब धुंधलके उसने अपने दरवाजे पर टांग रखे थे
धुंधलके को धोखा देकर अन्दर झाँक रही मेरी आँखें
जब तक पिघलती
उसने तपाक से पूछा
अपनी हथेलियाँ दिखाओ !
मुझे /तुम्हारी हथेलियाँ अच्छी लगती है
तुम्हारी आँखें भी और कुछ कवितायेँ भी
मुझे तुम्हारे ठहाके भी / बेहद पसंद हैं
मुझे वो आंसू भी अच्छे लगते हैं
जो तुम मेरे लिए बहाते हो |
मुझे नापसंद हैं/ तुम्हारी बातें
वो बातें /जिनमे सिर्फ तुम होते हो मै नहीं
तुम्हारे वो झूठ भी नापसंद है
जिन्हें मै हमेशा सच समझती हूँ
तुम्हारा गुस्सा भी /जो मुझसे कम है
मुझे /तुम्हारा पावडर लगाना भी नापसंद है
जिनसे तुम्हारे पसीने की महक मुझ तक नहीं पहुँचती
मुझे बहुत नापसंद है
तुम्हारा/ बाएं हाँथ से खाते हुए मुस्कुराना
मुझे रुलाकर खुद गुनगुनाना
बहुत देर तक समझाती रही वो
अच्छे लगने और प्यार करने के अंतर को
तुम्हे मालूम ? मुझे तुम्हारा चेहरा अजनबी लगता है
फिर भी तुम / मेरे साथ हो
जैसे किसी थके हुए सफ़र में
कन्धों का अपना पराया ख़त्म हो जाता है
सुनते हो ? मेरी तलाश अभी पूरी नहीं हुई
तुम वो वाले नहीं हो
जैसे उस तस्वीर में थे
मेरे जैसे / हाँ हाँ बिलकुल मेरे जैसे
मगर फिर भी तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है
ग़लतफ़हमी में न रहो
ये प्यार नहीं /मेरे जीने की शर्त है
वैसी ही शर्त जैसी
बरसने के लिए बादल धरती से लगाता है
वैसी ही शर्त / जो मेरे होठों ने जुम्बिश के लिए
तुम्हारी हथेलियों से लगायी है
बिलकुल वैसी ही शर्त
जो तुम्हारे जाने के बाद /मेरी आँखों का
गली के उस आखिरी मोड़ से है
बस वही शर्त जो
हमारे मिलने और तुम्हारी कविता के बीच है
हम और वो फिर एक बार
कुछ -कुछ ऐसे ही मिले

शनिवार, 7 नवंबर 2009

मैं लौट आया हूँ फूलों के साथ

मैं लौट आया हूँ तुम्हारे पास
न थका हूँ न उदास
वैसे तो कोई भी नहीं बच सकता
मन के अवसाद और तन की थकान से
उम्र की ढलान हो या पहाड़ की ढलान
मैं कठिन यात्रा से वापस लौटा हूँ -सकुशल
तुम मेरी तरफ देखो
मैंने दोनों हाथों से एक गुच्छा फूल
उठा रखा है ,इन्हें भी देखो -
इसमें सात रंग के फूल
मस्ती से महक रहे हैं
अगर तुम उन्हें कठिन यात्रा का उपहार नहीं मान सकते तो इन्हें
मेरा प्यार भी मत मान लेना
मेरा प्रस्ताव
इन फूलों की पटकथा में अप्रकाशित छिपा हुआ है
यात्रा के अंत में जब फूलों को प्रताडित किया जाता है
दुस्वप्नों के भय से तब
मेरा ही मन जानता है|
पत्तियों का टूटना
पतझड़ की शिनाख्त की कार्यवाही में
पेड़ किस तरह मानता है ?
चिडिया का मन जानता है |
मेरे हाथों में महकता गुच्छा फूल
चोरी या बरजोरी का नहीं है
मैं इन्हें अभिनन्दन समारोह से नहीं लाया
मेरा नाम फूलों का दाम नहीं है दोस्त
माली का काम फूलों का दाम है
देखो इस उपहार को
प्यार के अधिकार से परखो
ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ
बूँद जब फूलों पर ठहरती हैं तब
उसमे आँखें होती है ,,,,,,,,