मैं लौट आया हूँ तुम्हारे पास
न थका हूँ न उदास
वैसे तो कोई भी नहीं बच सकता
मन के अवसाद और तन की थकान से
उम्र की ढलान हो या पहाड़ की ढलान
मैं कठिन यात्रा से वापस लौटा हूँ -सकुशल
तुम मेरी तरफ देखो
मैंने दोनों हाथों से एक गुच्छा फूल
उठा रखा है ,इन्हें भी देखो -
इसमें सात रंग के फूल
मस्ती से महक रहे हैं
अगर तुम उन्हें कठिन यात्रा का उपहार नहीं मान सकते तो इन्हें
मेरा प्यार भी मत मान लेना
मेरा प्रस्ताव
इन फूलों की पटकथा में अप्रकाशित छिपा हुआ है
यात्रा के अंत में जब फूलों को प्रताडित किया जाता है
दुस्वप्नों के भय से तब
मेरा ही मन जानता है|
पत्तियों का टूटना
पतझड़ की शिनाख्त की कार्यवाही में
पेड़ किस तरह मानता है ?
चिडिया का मन जानता है |
मेरे हाथों में महकता गुच्छा फूल
चोरी या बरजोरी का नहीं है
मैं इन्हें अभिनन्दन समारोह से नहीं लाया
मेरा नाम फूलों का दाम नहीं है दोस्त
माली का काम फूलों का दाम है
देखो इस उपहार को
प्यार के अधिकार से परखो
ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ
बूँद जब फूलों पर ठहरती हैं तब
उसमे आँखें होती है ,,,,,,,,
शनिवार, 7 नवंबर 2009
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9 टिप्पणियां:
आवेश जी,
आपके ब्लॉग पर आपकी सभी कवितायेँ अब एक साथ पढने को मिलेंगी, बेहद ख़ुशी हो रही है देखकर| आपकी कविता सदा हीं बेहद सुन्दर होती है, शब्द-चयन और माधुर्यता अचंभित करती है|
पत्तियों का टूटना
पतझड़ की शिनाख्त की कार्यवाही में
पेड़ किस तरह मानता है ?
चिडिया का मन जानता है |
कोमल और भावपूर्ण रचना केलिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें| शुभकामनायें!
पेड़ किस तरह मानता है ?
चिडिया का मन जानता है
man ki komalata man hi janta hai ise aapne ba khubi ubhara hai
phulon ke sang lautna
pyaar ke bol bolna
देखो इस उपहार को
प्यार के अधिकार से परखो
ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ
बूँद जब फूलों पर ठहरती हैं तब
उसमे आँखें होती है ,bahut hi badhiyaa
मेरा नाम फूलों का दाम नहीं है दोस्त
माली का काम फूलों का दाम है
देखो इस उपहार को
प्यार के अधिकार से परखो
ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ
toooooo good bhai....
अपनी कोमल भावना के साथ प्यार में अधिकार की तथस्तता ... बहूत खूब ...!
सुन्दर सराहनीय भावों को संजोया है आपने बहुत सुन्दर ! थोडा शब्दो को
लय एवं तुकबन्दी के लिए तराशें बहुत मजा आयेगा
आवेश जी ! यह बहुत अच्छा किया आपने .अब आपकी कवितायेँ पड़ने के लिए यहाँ वहां भटकना नहीं पड़ेगा....
वही कोमल एहसास और सुंदर शब्द संयोजन ...बहुत प्यारी है कविता .शुभकामनाएं
बहुत भावः पूर्ण लेख है, आपकी संवेदनशीलता सीप के मोती की तरह उज्वल और ओस की बूंदों की तरह निर्मल है...
आवेश जी पहली बार कविता ब्लॉग पढ़ा...क्या गज़ब लिखते हैं आप...
सबसे खूबसूरत पंक्तियां लगी---
यात्रा के अंत में जब फूलों को प्रताडित किया जाता है
दुस्वप्नों के भय से तब
मेरा ही मन जानता है|
पत्तियों का टूटना
पतझड़ की शिनाख्त की कार्यवाही में
पेड़ किस तरह मानता है ?
और ये भी---
ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ
बूँद जब फूलों पर ठहरती हैं तब
उसमे आँखें होती है
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