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शनिवार, 7 नवंबर 2009

मैं लौट आया हूँ फूलों के साथ

मैं लौट आया हूँ तुम्हारे पास
न थका हूँ न उदास
वैसे तो कोई भी नहीं बच सकता
मन के अवसाद और तन की थकान से
उम्र की ढलान हो या पहाड़ की ढलान
मैं कठिन यात्रा से वापस लौटा हूँ -सकुशल
तुम मेरी तरफ देखो
मैंने दोनों हाथों से एक गुच्छा फूल
उठा रखा है ,इन्हें भी देखो -
इसमें सात रंग के फूल
मस्ती से महक रहे हैं
अगर तुम उन्हें कठिन यात्रा का उपहार नहीं मान सकते तो इन्हें
मेरा प्यार भी मत मान लेना
मेरा प्रस्ताव
इन फूलों की पटकथा में अप्रकाशित छिपा हुआ है
यात्रा के अंत में जब फूलों को प्रताडित किया जाता है
दुस्वप्नों के भय से तब
मेरा ही मन जानता है|
पत्तियों का टूटना
पतझड़ की शिनाख्त की कार्यवाही में
पेड़ किस तरह मानता है ?
चिडिया का मन जानता है |
मेरे हाथों में महकता गुच्छा फूल
चोरी या बरजोरी का नहीं है
मैं इन्हें अभिनन्दन समारोह से नहीं लाया
मेरा नाम फूलों का दाम नहीं है दोस्त
माली का काम फूलों का दाम है
देखो इस उपहार को
प्यार के अधिकार से परखो
ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ
बूँद जब फूलों पर ठहरती हैं तब
उसमे आँखें होती है ,,,,,,,,

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

आवेश जी,
आपके ब्लॉग पर आपकी सभी कवितायेँ अब एक साथ पढने को मिलेंगी, बेहद ख़ुशी हो रही है देखकर| आपकी कविता सदा हीं बेहद सुन्दर होती है, शब्द-चयन और माधुर्यता अचंभित करती है|

पत्तियों का टूटना
पतझड़ की शिनाख्त की कार्यवाही में
पेड़ किस तरह मानता है ?
चिडिया का मन जानता है |

कोमल और भावपूर्ण रचना केलिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें| शुभकामनायें!

surabhi ने कहा…

पेड़ किस तरह मानता है ?
चिडिया का मन जानता है
man ki komalata man hi janta hai ise aapne ba khubi ubhara hai

रश्मि प्रभा... ने कहा…

phulon ke sang lautna
pyaar ke bol bolna

देखो इस उपहार को
प्यार के अधिकार से परखो
ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ
बूँद जब फूलों पर ठहरती हैं तब
उसमे आँखें होती है ,bahut hi badhiyaa

Girish Kumar Billore ने कहा…

मेरा नाम फूलों का दाम नहीं है दोस्त
माली का काम फूलों का दाम है
देखो इस उपहार को
प्यार के अधिकार से परखो
ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ

ρяєєтii ने कहा…

toooooo good bhai....

अपनी कोमल भावना के साथ प्यार में अधिकार की तथस्तता ... बहूत खूब ...!

राजाभाई कौशिक ने कहा…

सुन्दर सराहनीय भावों को संजोया है आपने बहुत सुन्दर ! थोडा शब्दो को
लय एवं तुकबन्दी के लिए तराशें बहुत मजा आयेगा

shikha varshney ने कहा…

आवेश जी ! यह बहुत अच्छा किया आपने .अब आपकी कवितायेँ पड़ने के लिए यहाँ वहां भटकना नहीं पड़ेगा....
वही कोमल एहसास और सुंदर शब्द संयोजन ...बहुत प्यारी है कविता .शुभकामनाएं

Rajat Narula ने कहा…

बहुत भावः पूर्ण लेख है, आपकी संवेदनशीलता सीप के मोती की तरह उज्वल और ओस की बूंदों की तरह निर्मल है...

सुनीता शानू ने कहा…

आवेश जी पहली बार कविता ब्लॉग पढ़ा...क्या गज़ब लिखते हैं आप...
सबसे खूबसूरत पंक्तियां लगी---
यात्रा के अंत में जब फूलों को प्रताडित किया जाता है
दुस्वप्नों के भय से तब
मेरा ही मन जानता है|
पत्तियों का टूटना
पतझड़ की शिनाख्त की कार्यवाही में
पेड़ किस तरह मानता है ?

और ये भी---

ओस के अंदाज से पंखुडियों को छुओ
बूँद जब फूलों पर ठहरती हैं तब
उसमे आँखें होती है

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