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शनिवार, 1 मई 2010

वो जो उदास है ...........

आजकल वो एक उदास है
जिसके सपनो के दरवाजे /कई तालों में बंद हैं
और उन दरवाजों के आगे/ कोई राक्षस पहरा दे रहा है
न तो ताला खुलता है न ही राक्षस को नींद आती है
हाँ, ये जरुर है कि इस उदासी के बीच भी
उसके होठों का कम्पन
मेरी आँखों के चौराहे से होकर गुजरता है |
और मै /उन चौराहों पर बिखरे रंगों में सराबोर हूँ |
मै जानता हूँ उदासी की धूप ओढ़
उसने अपनी ग़जलों को रुखसत कर दिया है
और कागज़ पर/ मेरी हथेलियाँ चस्पा कर दी है
मै पूछता हूँ ,क्या ये दवा है ?
उसका वही सधा सा जवाब 'नहीं ये तकनीक है मेरे पुरुष "
जो मैंने अभी अभी सीखी है |
इस उदासी के बीच
उसकी आँखों के आंसू की कुछ बूंदें
बिटिया के बालों की लटों में खो गए है
चंद बूंदें / खिडकियों से झांकते गुलमोहर के पेडों में नजर आती है
उसने कुछ बूंदें
दूर सड़क पर रेंगते किसी साए को/ सिर्फ इसलिए दे दी
क्यूंकि शायद वो फिर कभी दुबारा आएगा
उसके आंसुओं की कुछ बूंदों ने /मेरे कलम की रोशनाई को
अब तक सुर्ख बना रखा है
उसकी ये उदासी ख़त्म करने की मेरी कोई भी कोशिश
उसे मुझसे दूर कर देती है |
इस उदासी के बीच
दरवाजों में लगे तालों पर /मैं मोम पिघलता देख रहा हूँ
वो अन्दर सपनों की दूसरी किस्त तैयार कर रही है
और हाँ ,राक्षस अब तक जाग रहा है |

8 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत गहरी विवेचना कर दी है उदासी पर ....

दरवाजों में लगे तालों पर /मैं मोम पिघलता देख रहा हूँ
वो अन्दर सपनों की दूसरी किस्त तैयार कर रही है

ओह ये सपने भी ना...बहुत अच्छी रचना

bharatiabheedha ने कहा…

oratt or sapne easy target. nahee ajj ke samai main admee yanee ki POORUSH ke liyey bhee sapne dekhna orr unhen jeena utna hee mushkil hai ,iss main se isstree ko hata ke isse sirf apne per le ker likho to bhee iss kee nazakat kam nahee hogee . iss mushkil dorr main sapne dekhan to kisee ke liyey bhee mushkil hai unka sakar hote dekhna to dooorrrrrrrr kee bat hai , yoon hee baqq diya hai sab kujh ager bura lage to delete ker dena . orr haann vaise hai achhee .

Shekhar Kumawat ने कहा…

bahut khub

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

"उसके आंसुओं की कुछ बूंदों ने /मेरे कलम की रोशनाई को
अब तक सुर्ख बना रखा है"... bahut sunder!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

दरवाजों में लगे तालों पर /मैं मोम पिघलता देख रहा हूँ
वो अन्दर सपनों की दूसरी किस्त तैयार कर रही है...
mann kee anginat parton kee vyakhyaa, apratim

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

awesh ji,
kafi dino baad aapki kavita padh rahi hun. yun to kavita udasi par hai par padhkar bahut khushi hui, samvednaaon ki akathya bhasha dikhti hai aapki rachna mein.
jitni gambhirta aur utkrishta.ta se aap lekh likhte hain utni hin gahraai se kavita bhi. shabd ke sath ehsaas ka prastutikaran achambhit karne wala. atiuttam rachna...

इस उदासी के बीच
दरवाजों में लगे तालों पर /मैं मोम पिघलता देख रहा हूँ
वो अन्दर सपनों की दूसरी किस्त तैयार कर रही है
और हाँ ,राक्षस अब तक जाग रहा है |

kavita likhna jaari rakhein, bahut bahut badhai aur shubhkaamnayen aapko.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बहुत खूब !

शिवांश शर्मा ने कहा…

shraddha didi ke blog pe aapko dekha aur fir aapke blog pe aapki kavita ko.

ise padhne ke baad main kya kahoon,nahi samajh paa raha hoon.mere paas shabdo ki kami hai.

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