
मै फिर से लौटना चाहता हूँ
उस एक पल की ओर
जहाँ पावों की धूल
ख़बरों में बदल जाती थी
वो एक कल मुझे दे सको तो दे दो
जहाँ मेरे छत की मुंडेर
गजलों की किताब थी और शहर एक नज्म
मै चाहता हूँ कि अपने झोले में रखे सारे आईने
पड़ोस की दूकान पर बेच आऊं
और झोले को पड़ोस वाली पहाड़ी पर बिखरे लाल पत्थरों से भर दूँ
मै अपने हाथों में लाल गुलाब की जगह
बेहया की टहनियां रखना चाहता हूँ
मै चाहता हूँ कि मेरी आँख या तो जमीन पर हो
या आसमान पर
मै चाहता हूँ उस एक जगह नंगे पाँव पहुँचजाऊं
जहाँ ना तो कोई इन्तजार था ,ना कोई उम्मीद
मै नहीं देखना चाहता हूँ उन चेहरों को
जो उस एक पल के इस पार थे
अपनी अपनी साजिशों के साथ
मुझे अपराधी बनाते हुए
अपनी अपनी मसीहाई का ढोल पीटते हुए
5 टिप्पणियां:
adbhud kriti...
दर्द का मजहब नहीं होता , इसीलिए सब उसे महसूस करते हैं ...
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
bahut badiya...
mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
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