गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011
तुम्हे प्यार करते हुए
तुम्हे प्यार करते हुए
मुझे अच्छी लगती है वो सभी औरतें
जिनसे मुझे प्यार हो सकता था
गुडिया हाट में घुमती /दुकानदारों से लडती
पर्स में छोटे बड़े नोटों की परतें लगाये
मोटी बिंदी वाली औरतें
वो औरतें/ जो खूबसूरती को प्यार करने की शर्त माने हुए
अपनी उम्र में/ उतनी ही स्थिर हैं
जितनी तुम मेरे प्यार में हो |
तुम्हे प्यार करते हुए
मुझे बेहद पसंद आती है
"कभी - कभी " की राखी गुलजार
जी में आता है
उसे बाहों में ले लूँ
और इस बार
वो मेरे लिए गाये
"कभी - कभी मेरे दिल में ख्याल आता है "
तुम्हे प्यार करते हुए
मुझे प्यार आता है /उन दुश्मनों पर
जो बदजात सिर्फ और सिर्फ
तुम्हे चाहने के लिए पैदा हुए हैं
मै चाहता हूँ कि /उनकी रात के किसी कोने में
मैं भी शामिल होऊं
उनके बालों पर हाँथ फेरूँ या फिर उन्हें अपने हिस्से की नींद दे जाऊं
मैं उन्हें अपनी हथेली के /उस हिस्से को भी चूमने को कह सकता हूँ
जिस पर तुम्हारे होठों के निशान /अब भी सुर्ख हैं
तुम्हे प्यार करते हुए
मुझे अच्छे नहीं लगते ग़ालिब
अपनी गलियों में मजमा लगाकर किस्मत का रोना रोते हुए
अगर कभी मिले तो मै
कह सकता हूँ उनसे
कभी हमारे दरवाजे आओ
गजलों का सफ़र वहाँ से शुरू होता है
जहाँ से तुम आसमान की और देखकर मुस्कुराती हो
तुम्हे प्यार करते हुए
तुम्हे प्यार न करना भी मुझे अच्छा लगता है
मै चाहता हूँ कि
वापस फिर से वहीँ पहुँच जाये
उस एक सुबह में
जहाँ/ एक कोने में भूत बन कर बैठी तुम
वाष्पीकरण के सिद्धांत को समझते -समझते
उस एक सफ़र की और निकल पड़ती हो
जहाँ तुम्हे
उड़े हुए/खाली और बेतरतीब से दिन मिलते हैं
फिर भी मेरे प्यार में पड़ी तुम
बार -बार बूँद बन पिघलती हो /मेरे सीने पर
और जहाँ से मै -
तुम्हे प्यार करते हुए
तुम्हे प्यार न करने की कोशिशें जारी रख सकता हूँ
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9 टिप्पणियां:
तुम्हे टिप्पणी करते हुए मैं पूछना चाहूँगा की इतने दिनों बाद क्योँ डाली आपने पोस्ट ...
आपकी कविता मर्मस्पर्शी है ....बहुत सुन्दरता से आपने अपने विचारों को अभिव्यक्त किया है ...कविता का शिल्प पक्ष और भाषा भाव अनुकूल है ..और यही आपकी कविता की सार्थकता है ....आपका आभार
आपकी लेखनी बहुत समर्थ है आवेश जी....आपकी बात सीधी और सटीक पर कोमल भावनाओ को सहेजती समेटती सी...सुघड़ घरनी सी सामने रख देती है...
बहुत दिनों बाद आई आपकी रचना...लेकिन इंतजार सार्थक रहा....बधाई आपको
प्यार का मनोविज्ञान . वाष्पीकरण का रसायन और शब्दों का भूगोल . अद्भुत समन्वय वाली रचना . सबसे अहम् की भैया आपकी इस कविता के साथ हम मेला में पहुच गए . ये कहना जरुरी थोड़े है की रचना श्रेष्ठ है , ये तो सर्व विदित है .
ग़ालिब से लेकर राखी गुलज़ार तक और गुडिया हाट से लेकर कभी कभी तक ....सारे एहसास सारी खूबसूरती समेट डाली है.
ऐसे अनूठे बिम्ब ..आते कहाँ से हैं आपके ज़हन में? खैर जहाँ से भी आते हैं जरा जल्दी जल्दी बुलाया कीजिये जिससे ऐसी अनुपम रचनाये पढ़ने को जरा जल्दी जल्दी मिलें.
pyar ko itna aur itni jaghon par chinh-na kavita kii range badhata hai...aapne ant tak ek chaukas bhasik vyavhar se us range ko sambhala hai...bahut bahut badhai
बहुत प्यारी कविता!
आज इसे फ़िर से पढ़ा ! कविता और प्यारी लगी! सुन्दर! अद्भुत!
कोशिशें जारी रख सकता हूँ....
जारी रखिये ...सुन्दर
bar bar padhne yogya..har bar ek naya ahsaas dilati hui utkrisht rachna....
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