मंगलवार, 1 मार्च 2011
मैं फिर भी साथ चलूँगा
कच्ची -पक्की ,टेढ़ी -मेढ़ी राहों पर जब चलते चलते थक जाओगे
थम जाओगे
पत्थर जैसे बन जाओगे
तब पाओगे
मुझे अकेला ,उन राहों पर
जिन राहों पर
तुमने मुझसे भरी दूपहरी छाँव छिनी थी
ठांव छिनी थी
मेरी आँखों के सपनों के रंग छीने थे
जीने के सब ढंग छीने थे
मैं अकेला उफ़ ये मेला
फिर भी तुम तक आ जाऊंगा
गीत पुराना फिर गाऊंगा
सावन बीते जाये पिहरवा
मन मेरा घबराये पिहरवा
तब तुम मुझसे ये न कहना
तुम कितना अच्छा हँसते हो
तुम कितना अच्छा गुनते हो
मै भी तुम्हरे साथ चलूंगी
हँसते गाते रोते लड़ते
साथ जियूंगी ,खूब जियूंगी
फिर एक दिन ऐसा आएगा
जब तुम सपनों से जागोगे
इन राहों पर चलते -चलते
उस मंजिल को याद करोगे
जिस मंजिल पर
तुमने कब से
एक कहानी
जिसमे राजा था और रानी
बुन रखी थी
उस मंजिल पर तुमको अपने
मीत मिलेंगे जीवन के संगीत मिलेंगे
साज मिलेंगे ,राग मिलेंगे ,जीने के अंदाज मिलेंगे
फिर उस मंजिल पर आकर
मुझको बेबस ,तनहा पाकर
तुम दरवाजा बंद करोगे
हर एक बात पर रंज करोगे
उम्मीदों पर तंज करोगे
सफ़र अकेला रेलम रेला
खुद में बंटकर रह जाऊंगा
गीत नहीं फिर गा पाउँगा
लेकिन फिर भी मैं कहता हूँ
मैं आऊंगा ,फिर आऊंगा
जब तुम पत्थर बन जाओगे
थक जाओगे
थम जाओगे
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8 टिप्पणियां:
क्या अंदाज है उलाहने देने का भी .उस पर, फिर भी आने की हट.वाह...जबर्दस्त्त फ्लो है.एक सांस में पड़ डाली पूरी कविता.
Jab ye jajba ho sath nibhane ka to jane wale kitni door ja payenge, khiche chale aayege. Sundar kavita.
बेहद अछी कविता के लिए थैंक्स
behad khubsurati se bhavo ko lay badh kiya hai...bina ruke ek sans me padh gayi...awesh ji sach me aap ki kavitaye chal chitr ki bhanti man bandhe rahti hai....
मैं आऊंगा ,फिर आऊंगा
जब तुम पत्थर बन जाओगे
थक जाओगे
थम जाओगे ,nice one
बहुत खूब..लाज़वाब..बधाई
u r a good poet likhte raho :)
ye kaisi zid hai? tum darwaza band karoge......khud mein bant kar rah jaunga...bahut khoob!
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