सोमवार, 25 जुलाई 2011
सुनो श्वेताम्बरा
सुनो श्वेताम्बरा
किस्से सुनाते सुनाते शहर सो गया है
बादलों के शामियाने में
बूंदों की बैचैनी बहुत कुछ ले जाती है
बहुत कुछ कह जाती है
कविता अकेले कोने में आधी भीगी - आधी सूखी
छाता लगाये खड़ी है
कलम सिरहाने / अपने स्मृति -भ्रंश पर
सफाई देते -देते थक चुकी है
इस वक्त छत, सिनेमा का पर्दा है
और आँखें प्रोजेक्टर
वो सब कुछ जो तुमने कहे और जो तुमने न कहे
एक साथ मुझसे रेजोनेंस कर रहे
मैं चाहता हूँ कि तुम इस सोये हुए शहर को जगाओ
आओ मुझे फिर से लोरियां सुनाओ
या कोई गीत गाओ
ये भी न हो सके तो शहर के लिए ही सही
लड़ो ,झगड़ो और लौट जाओ
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2 टिप्पणियां:
kya baat hai....adbhud
कविता अकेले कोने में आधी भीगी - आधी सूखी
छाता लगाये खड़ी है
कलम सिरहाने / अपने स्मृति -भ्रंश पर
सफाई देते -देते थक चुकी है... shahar ka yatharth prastut kiya hai. sundar krity.
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