(५ वर्ष पूर्व डायरी में लिखी गई ये कविता मैंने बिसरा दी थी )
हम एक बार फिर उससे मिले
इन सर्दियों में
तमाम बारिश मै अपने शहर छोड़ आया था
बेहिसाब धुंधलके उसने अपने दरवाजे पर टांग रखे थे
धुंधलके को धोखा देकर अन्दर झाँक रही मेरी आँखें
जब तक पिघलती
उसने तपाक से पूछा
अपनी हथेलियाँ दिखाओ !
मुझे /तुम्हारी हथेलियाँ अच्छी लगती है
तुम्हारी आँखें भी और कुछ कवितायेँ भी
मुझे तुम्हारे ठहाके भी / बेहद पसंद हैं
मुझे वो आंसू भी अच्छे लगते हैं
जो तुम मेरे लिए बहाते हो |
मुझे नापसंद हैं/ तुम्हारी बातें
वो बातें /जिनमे सिर्फ तुम होते हो मै नहीं
तुम्हारे वो झूठ भी नापसंद है
जिन्हें मै हमेशा सच समझती हूँ
तुम्हारा गुस्सा भी /जो मुझसे कम है
मुझे /तुम्हारा पावडर लगाना भी नापसंद है
जिनसे तुम्हारे पसीने की महक मुझ तक नहीं पहुँचती
मुझे बहुत नापसंद है
तुम्हारा/ बाएं हाँथ से खाते हुए मुस्कुराना
मुझे रुलाकर खुद गुनगुनाना
बहुत देर तक समझाती रही वो
अच्छे लगने और प्यार करने के अंतर को
तुम्हे मालूम ? मुझे तुम्हारा चेहरा अजनबी लगता है
फिर भी तुम / मेरे साथ हो
जैसे किसी थके हुए सफ़र में
कन्धों का अपना पराया ख़त्म हो जाता है
सुनते हो ? मेरी तलाश अभी पूरी नहीं हुई
तुम वो वाले नहीं हो
जैसे उस तस्वीर में थे
मेरे जैसे / हाँ हाँ बिलकुल मेरे जैसे
मगर फिर भी तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है
ग़लतफ़हमी में न रहो
ये प्यार नहीं /मेरे जीने की शर्त है
वैसी ही शर्त जैसी
बरसने के लिए बादल धरती से लगाता है
वैसी ही शर्त / जो मेरे होठों ने जुम्बिश के लिए
तुम्हारी हथेलियों से लगायी है
बिलकुल वैसी ही शर्त
जो तुम्हारे जाने के बाद /मेरी आँखों का
गली के उस आखिरी मोड़ से है
बस वही शर्त जो
हमारे मिलने और तुम्हारी कविता के बीच है
हम और वो फिर एक बार
कुछ -कुछ ऐसे ही मिले
सोमवार, 23 नवंबर 2009
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18 टिप्पणियां:
bahut achchi
५ वर्ष पूर्व .. realy g8 devotion after long time
good
ये प्यार नहीं /मेरे जीने की शर्त है
वैसी ही शर्त जैसी
बरसने के लिए बादल धरती से लगाता है
बिलकुल सटीक वर्णन... अच्छा लगा..
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें
कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये
SWAGAT
फिर भी तुम / मेरे साथ हो
जैसे किसी थके हुए सफ़र में
कन्धों का अपना पराया ख़त्म हो जाता है...
बिलकुल वैसी ही शर्त
जो तुम्हारे जाने के बाद /मेरी आँखों का
गली के उस आखिरी मोड़ से है
बस वही शर्त जो
हमारे मिलने और तुम्हारी कविता के बीच है...
बहुत भावपूर्ण कविता है. बहुत सुन्दर..!!
- सुलभ
स्वागत और शुभकामनाएं
ya baimaani tera hi aasraa?
excellent expressions
bahut praabhavshali abivyakti hai ...kuch panktiyon main gazab ki kashish hai..
बेहिसाब धुंधलके उसने अपने दरवाजे पर टांग रखे थे
धुंधलके को धोखा देकर अन्दर झाँक रही मेरी आँखें
जब तक पिघलती
उसने तपाक से पूछा
maja aa gaya padhkar.
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इस कविता का हर इक लब्ज सच्चा है ऐसा लगता है की मैं कोई कविता नहीं पढ़ रहा हूँ. मानो की कोई मेरे सामने बैठकर मेरी छबी के बारे में वर्णन कर रहा हो. बेमिसाल है ये कविता.
अच्छा लिखा है
उस ने कहा सुन
अहद निभाने की खातिर मत आना
अहद निभानेवाले अक्सर मजबूरी या
महाजूरी की थकन से लौटा करते है .न
तुम जाओ और दरिया दरिया प्यास बुझाओ
जिन आन्खो .न में .न डूबो
जिस दिल में .न भी उतारो
मेरी तलब आवाज़ न देगी
लेकिन जब मेरी चाहत और मेरी ख्वाहिश की लौ
इतनी तेज़ और इतनी ऊँची हो जाए
जब दिल रोदे
तब लौट आना
narayan narayan
panch varsh purani rachana......
par aaj ki si lagati hai...... chitralikhit see.
shubhkamnayen.....
Its not a poem,in the form of document a great achievement.CONGRATULATIONS !
आवेश जी,
बेहद कोमल भाव है कविता में, ५ वर्ष पुरानी भले हीं हो पर ये कभी पुरानी नहीं हो सकती| यूँ लगता जैसे इस कविता के भाव मन की हदों के पार से आकर एक चित्र की भांति सभी के मन पर अंकित हो रहे हैं| आपकी रचना की एक ख़ास बात सदा लगती कि इसके दोनों पात्र जैसे कि हम सभी के सामने अपने एहसासों को बाँट रहें हैं| बेहद उत्कृष्ट रचना के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें!
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