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गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

भोपाल मेरी जान !

मेरे भोपाल
बस एक बार मुझको कह दे तू
वो एक रात भला कब तक तुझ पर बीतेगी ?
कब तलक आँख के आंसू तुझे भिगोएँगे
कब तलक तख्तियों पर रंज कहे जायेंगे
कब तलक दिल्ली की बेदिली सहेगा तू
कब तलक शाम के धुंधलके तुझे डरायेंगे
सुन ए भोपाल , मेरी जान ,मेरे साथी सुन
क्या ये शहर भी कहानी तेरी दुहराएंगे ?
तुने सुनी थी न परवीन की बेटी की हंसी ?
तेरी गलियों में ही श्यामसखा खोया था
अब न परवीन की बेटी है न कोई श्यामसखा
बस एक धुंआ सा है जो नस नस में घुलता जाता है
तेरे आँगन से मेरे शहर की दीवारों तक
कुछ है जो हर रोज ढलता जाता है
आज फिर ३ दिसंबर है मेरे यार ,सुनता है तू ?
मेरी आँखों से क्यूँ बरबस ही बहता जाता है |
मै जानता हूँ कि तेरा दर्द बे इन्तेहाँ हैं अब
वो एक तू है कि हँस- हँस के सहा जाता है |
मेरे भोपाल बस एक बार मुझसे कह दे तू
वो एक रात भला कब तक तुझ पर बीतेगी ?



(श्यामसखा ()वर्ष और परवीन की बेटी ()की आज ही के दिन भोपाल गैस त्रासदी के दौरान असामयिक मौत हुई थी )

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

मार्मिक!

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

awesh ji,
hriday-sparshi rachna hai, bhopal ki traasdi na bhoolne wali peeda hai, magar bhopal has kar sab sah raha...

मै जानता हूँ कि तेरा दर्द बे इन्तेहाँ हैं अब
वो एक तू है कि हँस- हँस के सहा जाता है |
मेरे भोपाल बस एक बार मुझसे कह दे तू
वो एक रात भला कब तक तुझ पर बीतेगी ?

behad sundar shabdon mein vyatha ki abhivyakti, shubhkamnayen.

"Nira" ने कहा…

bahut dilko choo gayi aapki yeh rachna
ek baar phir sab samne aa gayi vo raat

jitendra jitanshu ने कहा…

un lamhon se gujara jo bheeter tak tees chhrte hain
jjitanshu
editor sadinama, kolkata
09231845289

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