थालियाँ छनक रही ,कटोरियाँ भड़क रहीं
रोटी है न दाल है ,कमाल है ,कमाल है
फिर भी नया साल है |
भूख के सवाल पर ,हाल बेहाल पर
सुर्ख रंग लाल है ,लाल लाल लाल है
फिर भी नया साल है |
हर तरफ बवाल है,बवाल पर बवाल है
जिससे जूझता हुआ हर आदमी हलाल है
फिर भी नया साल है |
कुर्सियों की होड़ में ,जोड़ में तोड़ में
हर तरफ चाल है ,चाल भेडचाल है
फिर भी नया साल है |
ख़बरों के गाँव में ,गाँव गिरांव में
बिक रहा हर माल है ,खाने में बाल है
फिर भी नया साल है |
हर तरफ धुंआ धुंआ ,क्या जमीन क्या आसमा
हर शहर भोपाल है ,सीने पे नाल है
फिर भी नया साल है |
हुस्न के बाजार में ,इश्क की हैं बोलियाँ
कोई नहीं मलाल है ,जमाल ही जमाल है
फिर भी नया साल है |
हर तरफ जहर ,कहर ,धधक रहा है हर जिगर
ये आग बेमिसाल है ,मिसाल बेमिसाल है
फिर भी नया साल है |
गुरुवार, 31 दिसंबर 2009
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11 टिप्पणियां:
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें...
thali se daal to kya saag bhi gayab hai
phir is ummeed me saab phir se bahaal hoga
naye saal ko bhi naee dulhan ki tarah dehari ke andar le aate hai ,us ke kadam shubh ho is ummed me
nav varsh ki shubh kamnaye ..........
सभी हृदय में हो सके सार्थक सोच प्रवेश।
भाव-सुमन प्रेषित यहाँ नया साल संदेश।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मौजूँ कविता ।
नये वर्ष की शुभकामनायें ।
बढिया रचना .. आपके और आपके पूरे परिवार के लिए नया वर्ष मंगलमय हो !!
ऐसा ही है भाई!! फिर भी नया साल तो नया साल है.
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
awesh ji,
''nav warsh mangalmay ho''
har taraf hota amnagal par kya kare har insaan behaal hai,
pet khaali magar sanskriti se mila sahanshakti ka bhandaar hai,
pura saal jashn mumkin nahin ek din manaa le bas ek baar aataa naya saal hai.
saamayik aur sateek kavita keliye badhai sweekaren.
naya saaal mubarak ho sir... jindagi hai yun hi chalti hai...
एक रोटी का टुकड़ा जब इज्जत के वदले प़ता है
सच पूछो कि दोस्त मेरे,
मुझे एक नया साल दिख जाता है
नया साल क्या हाल बुरा है , भूखे बच्चा-बच्ची रहो मे
कोई अर्ध नग्न फूल लिए दिख जाता है |
एक रोटी का टुकड़ा जब इज्जत के वदले प़ता है
सच पूछो कि दोस्त मेरे,.....
मुझे एक नया साल दिख जाता है
भूखा भाई महा नगरो की सड़को पर दिख जाता है |
मासूम उदासी मुख मंडल पर मजबूर कोई दिख जाता है ||
सच पूछो कि दोस्त मेरे,.....
मुझे एक नया साल दिख जाता है
एक दशक मे कितने वदले ,नर नग्न पुरुष नाना वदले |
इस नग्न संस्कृति की खातिर, जब कानून नया लिख जाता है ||
....... सच पूछो कि दोस्त मेरे
हाय! वासना क्या कहना , अर्ध नग्न सामाजिक है गहना |
भाई के हाथो को छूते, भय भीत घरो मे रहती बहिना |
अस्तित्व हमारा पूछ राहा इस देश मे मुझे कब तक रहना ||
टीवी के चित्रों मे धुधले जब द्रश्य कोई दिख जाता है ||
....... सच पूछो कि दोस्त मेरे @
कवि काछिवांत हरदयाल कुशवाहा ३१/१२/२००९
क्या बात है भाई यहाँ लाल तो कब के आ चुके और हमारा आगमन साल भर बाद हो पा रहा है। खेद है हमें जो इतनी सुन्दर कविता को अब पढ़ रहे हैं। हमें मुआफ़ कीजिएगा भाई।
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