कल रात देर तक /सितारों के ठहाके गूंजते रहे
चांदनी ,जो तुमने अपने पल्लू में बाँध रखी थी
मेरे पैरो पर सर रखी तुम /ये सच जानती थी
मगर मैं नावाफिक था !
मुझे पागल बना देने वाली तुम्हारी हंसी
तुम्हारे हाथों की आइसक्रीम की तरह पिघल रही थी
और मैं ठिठुर रहा था
संभालो सोनू ,गिरेगा !
सरसों के रंग की
सूती साड़ी में लिपटी तुम
मुझसे अजीब से सवाल कर रही थी
हमेशा बदलने वाली तुम बदस्तूर बरस रही थी
और मैं /तुम्हारे पल्लू में बंधी चांदनी को अंगुलियों में लपेट रहा था
कितना गुस्साते हो तुम ?
हमेशा तो मैं ही मनाती हूँ
तुम्हे मालूम ,कितना रोई मैं उस दिन ?
तुम कब बदलोगे ?
मुझे ये पाउडर की महक पसंद नहीं
तुम्हारे पसीने की महक गुम हो जाती है
जो भी हो कभी कभी जिंदगी ला देते
इस बार झूठ कहा था तुमने ,जिंदगी तो तुम लेकर आती हो हर बार
टुकडों में ही सही
लेकिन मैं उसे कभी आँखों से
तो कभी हाथों से ,तो कभी बातों से नीचे गिरा देता हूँ
मैं अब चुप हूँ ,खामोश ,और तुम हंस रही हो ,
खुला हुआ है पेट तुम्हारा
मैं कुछ झल्लाता कुछ मुस्कुराता हुआ अपनी आँखें नीचे कर ले रहा हूँ
कुछ कहूँ क्या ?
सब तो कह दिया ,सब कुछ
अबसे सिर्फ तुम कहना
इस बार तुम्हारी आँखें बंद हैं
तुमने करवट बदल ली है
मेरे हाँथ में रखी किताब का दूसरा पैराग्राफ
आज हमेशा की तरह दुबारा पढ़ा जा रहा है
चुप्पी फिर से टूटती है
बंद आँखों को झूठा साबित करते हुए तुम्हारे होंठ थर्राते हैं
तुम्हारे हाथों पर उस दिन बहुत सोने का मन था
क्यूँ था ?तुम भी न !
सच में प्यार करते हो न मुझसे ?
लडोगे तो नहीं न कभी ?
तुम और करीब आ गयी हो
मैंने छुपा लिया है अपने चेहरे को चांदनी से और तुमसे
दुबक सा गया हूँ तुम्हारे पेट में
जैसे कभी कभी हारने के बाद माँ के गोद में दुबकता था
ऐसा लगता है कोई आसमा सा ओढ़ लिया है
बंद आँखों से बादलों की तलाश में
मेरी हथेलियाँ तुम्हारे माथे से चिपक गयी हैं
उभर आई हैं तुम्हारे माथे की रेखाएं /मेरी अँगुलियों पर
पांवों की पायल गीत गा रही है
अब हम चुप हैं
सितारों की हंसी बदस्तूर जारी है
चादनी को बरसों बाद नींद आई है
उसे सोने दो
रविवार, 27 दिसंबर 2009
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7 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत...मोहब्बत सी नाजुक...
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर सब्द दिए हैं....बधाई। अच्छी रचना है।
बेहतरीन शानदार अभिव्यक्ति!!
tarif ke shabd hi nahi hain
kya bat hai...bahut achhe...apane pita se tumne bahut kuchh paya hai, tumhari rachnaon ko padh kar yahee kaha ja sakta hai....are narendra ka kuchh likha bhi post kiya karo....keep it up
har baar kee tarah prem kee sundar anubhuti... kavita kee har pankti dil ko sukun deti hui lagti hai...
Behtareen kavita,apne bhiter uthte gubar si.
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